सिंधु घाटी प्राचीन सभ्यता की पहचान और उसके कुछ रोचक तथ्य
हम सब ने सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में अपने स्कूलों की इतिहास की किताबों में पढ़ा लेकिन अभी उनकी जिज्ञासा कतई खत्म नहीं हुई है। सिंधु घाटी ने किस सभ्यता के बीज बोए और किसका नाश हुआ? इस सवाल की प्यास अक्सर बनी रहती है। सिंधु घाटी के बारे में कई कहानियां सुनने में आई हैं। उन्हें फिल्मों में भी दिखाया गया। ना जाने कितनी कहानियाँ लिखी हैं? अभी तक, इसकी सच्चाई अब भी एक रहस्य बनी हुई है।क्या है नया तथ्य?
आर्यभट्ट की माने तो महाभारत का युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ है। और इसी समय के आसपास, सिंधु घाटी सभ्यता अपने उरूज़ पर थी। पहले की खुदाई और रीसर्च के मुताबिक, हड़प्पा और मोहनजोदारो सभ्यताओं का गठन 2600 ईसा पूर्व में हुआ था। वही .कुछ इतिहासकार इस सभ्यता को 2700 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व भी मानते हैं।IIT खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के साइंटिस्टों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता के विषय में नई सच्चाई सामने लाई हैं। उनके मुताबिक़ यह पाँच हजार पाँच सौ साल पुराना नहीं है यह आठ हजार साल पुराना था।
रिसर्चरों ने हड़प्पा सभ्यता से 10,000 साल पहले की सभ्यता के प्रमाण सामने लाकर रखे हैं। इससे यह साफ है कि सभ्यता का अस्तित्व तब भी था जब भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण के समय में गिरावट शुरू हुई थी।
इससे यह निश्चित तय होता है कि महाभारत काल में सिंधु घाटी सभ्यता का कही न कहीं अस्तित्व था। महाभारत में, इस जगह को सिंधु देश के नाम से जाना जाता था। उस वक्त सिंधु का राजा जयनाथ था। जयद्रथ की शादी धृतराष्ट्र की बेटी दुशाला से हुई थी। जयभारत ने महाभारत के युद्ध में कौरवों के साथ पक्ष लिया था और चक्रव्यूह के दौरान अभिमन्यु की मौत में अहम भूमिका निभाई थी।
प्राचिन सिन्धु सभ्यता
सिंधु देश प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता को प्रदर्शित करता है। यह जगह न केवल अपनी कला और साहित्य के लिए फेमस थी बल्कि अपने व्यापार में भी सबसे आगे था। वर्तमान में पाकिस्तान के सिंधु प्रांत को पहले सिंधु देश कहा जाता था। कालिदास के महाकाव्य रघु वंश में भी इसका उल्लेख है कि सिंध नामक एक देश राम ने भरत को दिया था। मोहनजो-दारो और हडप्पा सिंधु यह दो सबसे बड़े शहर थे।एक नई रिसर्च के बाद दावा किया गया है कि लगभग 4,000 साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता के अंत का मुख्य कारण जलवायु में होने वाला परिवर्तन हो सकता है शोध में दावा किया गया है कि हिंदुओं की पवित्र नदी सरस्वती के स्रोत केंद्र और अस्तित्व पर लंबे समय से बहस चल रही है|
वक्त के साथ इलाके में होने वाले बदलाव का पता लगाने के लिए, उन्होंने उस चीज के मूल स्रोत के नमूने इखट्टा किया, जो नदी की निचली सतह में बस गए थे। इन सैंपल से यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि नदी या हवा के कारण इन नमूनों में क्या बदलाव हुए हैं।
शोध कर्ताओं ने बताया की
"हमने उन मैदानों के पुनर्निर्माण का प्रयास किया जहां सिंधु घाटी सभ्यता 5,200 साल पहले स्थित थी, और जल्द ही यह एक शहर बन गया, और यह धीरे-धीरे 3,900 से 3,000 साल पहले ढह गया।"हमारे शोध से पता चला है कि नदी के प्रवाह में गिरावट भारी वर्षा में कमी के कारण है, जो हड़प्पा संस्कृति के विकास और गिरावट में योगदान देता है।," जियोसन ने बताया की 2003 से 2008 के बीच किए गए रीसर्च के बाद यह भी दावा किया गया है कि पौराणिक सरस्वती नदी को हिमालय के ग्लेशियरों से पानी नहीं मिला है जो कि पहले बताया गया था। शोधकर्ताओं के मुताबिक़, सरस्वती नदी में पानी का मुख्य स्रोत मानसून की बारिश और जलवायु परिवर्तन के कारण, यह एक नदी बन गई जो केवल कुछ मौसमों के दौरान ही बहती है
Written By - Vaishnavi Sahni
Posted By - Tarun Mahawar | Tadkabright.com
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts. Please let me know.