मुंशी प्रेमचंद का जन्म एवं स्थान
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 1880 में वाराणसी स्थित एक लमही गाँव में हुआ था ये हिन्दी और उर्दू के महान भारत के लेखकों में से एक थे। इनका असल नाम धनपत राय श्रीवास्तव है प्रेमचंद को नवाब राय के नाम से भी लोग इन्हें जानते है। उपन्यास के क्षेत्र में भी उनका अहम योगदान है बंगाल के एक प्रसिद्ध उपन्यासकार को देखकर, शरतचंद्र ने उनसे उपन्यास के शासक के रूप में बात की।मुंशी प्रेमचंद का साहित्यक परिचय
प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की परंपरा का विकास भी किया है जो पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन कर रहे हैं। आगामी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित करने का काम मुंशी प्रेमचंद ने इसकी नींव रखी थी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास के बारे में पुरी जानकारी पाना बिलकुल अधूरा होगा। प्रेमचंद एक समर्पित लेखक, एक वफादार नागरिक, एक अच्छे वक्ता और सुध के संपादक थे।मुंशी प्रेमचंद के माता-पिता
उनकी मां का नाम आनन्दी देवी था और पिता मुंशी अजायबराय लमही गांव में डाकमुंशी थे।उनकी पढ़ाई उर्दू, फ़ारसी में शुरू हुई और उन्हें बचपन से ही जीवित चीजों के बारे में सीखने में मज़ा आता था।प्रेमचंद की शिक्षा
13 साल की छोटी सी उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकारों जेसे रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से पहचान प्राप्त कर ली । सन १८९८ में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में टीचर की नोकरी करने लगे। और नौकरी के साथ भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।१९१० में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास से इंटर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद संभाल लिया।मुंशी प्रेमचंद ने कई कहानिया और रचनाय लिखी निम्न प्रकार है -
सेवासदन,प्रेमाश्रम,रंगभूमि,निर्मला,गबन,कर्मभूमि,गोदान लगभग २ दर्जन उपन्यास तथा कफन,पूस की,पंच परमेश्वर,बड़े घर की बेटी,बूढी काकी,दो बैलो की कथा आदि और कही कहानियों में प्रेम झलकता हैप्रेमचंद का जीवन एवं संघर्ष
सात साल की उम्र में उनकी मां और चौदह साल की उम्र में पिता का देहान्त हो जाने के कारण उनका शुरुआती जीवन संघर्ष से भरा हुआ रहा। उनका पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार पंद्रह साल की उम्र में ही हुआ जो सफल नहीं रहा। वो आर्य समाज से प्रभावित थे जो उस वक्त का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा महिलाओं के विवाह का समर्थन किया और १९०६ में दूसरी शादी अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से केकी। उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी १९१० में उनकी रचना सोज़े-वतन के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया और उन पर जनता को भड़काने का भी आरोप लगाया गया।Written By - Rakesh Kumar Prajapati
Posted By - Rakesh Kumar Prajapati | TadkaBright.Com
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