खेजड़ली आंदोलन क्या है :-
TadkaBright || दोस्तो आज हम बात करने वाले है की खेजड़ली आंदोलन क्या है और यह कैसे शुरू हुआ किसके नेतृत्व में हुआ खेजड़ली आंदोलन एक ऐसा आंदोलन है जिसमें वृक्षों की कटाई को देखकर अपनी जान तक निछावर कर दी ऐसे वीरों केेे बारे में इस आंदोलन मैं उनकी वीरता के बारे में बताया गया है जो वृक्ष से चिपक कर लगे रहे। इस आंदोलन केेेेेे पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है जिसके बारे में हम लोगों नेेे बचपन में किताबों में बहुत पढ़ा है।
दोस्तो पेड़ पौधे और जंगल इस देश की धरोहर है पेड़ पौधे नहीं होंगे तो लगभग हमारा जीवन भी समाप्त हो जाएगा यह एक प्रकृति द्वारा पृथ्वी को दिया हुआ वरदान है जो हरियाली के रूप में इस धरती पर आई है और इस हरियाली का संरक्षण मानव को सौंप दिया गया है यह आंदोलन ही पेड़ पौधों एवं प्रकृति के कटाव को या उसके विनाश को रोकना ही हमारा कर्तव्य है।
खेजड़ली आन्दोलन कहाँ और कब शुरू हुआ था : -
दोस्तों खेजड़ली गांव से आंदोलन की शुरुआत हुई जो राजस्थान के जिले जोधपुर में स्थित है यह आंदोलन एक पर्यावरण संरक्षण के नेतृत्व में चलाया गया यह आंदोलन जोधपुर के खेजड़ली गांव में रहनेे वाली अमृता देवी के द्वारा सन 1730 में पर्यावरण को बचाने के नेतृत्व में चलाया गया। खेजड़ली आन्दोलन को चिपको आंदोलन के नाम सेे भी जाना जाता है।
चिपको आंदोलन क्या है : -
चिपको का शाब्दिक अर्थ चिपकना होताा है जिस प्रकार पेड़ की कटाई को रोकनेेे के लिए अमृता देवी और उसके तीन पुत्रियों द्वारा जंगल के सभी पेड़ों के पास जाकर उनसे प्रेम पूर्वक लिपट कर या चिपक कर खड़ी हो गई लेकिन राजा के सैनिकों ने उन बच्चोंं पर और अमृता देवी पर दया नहीं करतेे हुए सैनिकों के द्वारा पेड़ों के साथ-साथ उनको भी कटवा दिया गया।
जंगल में पेड़ काटने की वजह : -
खेजड़ली गांव में (वर्तमान में जोधपुर) जंगल में पेड़ काटने के विरोध में वहां केेेे निवासी लोगों ने बहुुुत ही ज्यादा विरोध जताया। विरोध जताने और बलिदान देने केे पीछ क्या कारण रहा होगा।और खेजड़ली गांव के आसपास बड़े व खेजड़ी के पेड़ काटने का एक बहुत बड़ा कारण रहा है।
कहा जाता है, कि सन 1730 में मारवाड़ में एक शासक हुआ करता था जिसका नाम महाराजा अभय सह के पुत्र अजीत सिंह द्वारा अपने किलेे के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री का प्रबंध कराने और चूना पकानेे के खातिर जंगलों से लकड़ी काटने का आदेश वहांं के मंत्री भंडारी गिरधरदास को पेड़ काटने का आदेश दिया।
वृक्षों की कटाई का क्या परिणाम मिला : -
राजा के सैनिक और मंत्री सहित जब खेजड़ली गांव पहुंचकर निर्ममता और निर्दयता के साथ अंधाधुंध पेड़ों की कटाई प्रारंभ कर दी ओर भंडारी गिरधरदास ने अपने सैनिकों को बड़े खेजड़ी के पेड़ काटने का आदेश दिया। तब उस समय गांव में रहने वाली एक महिला किसान थी जिसका नाम अमृता देवी था उसने पेड़ों की कटाई को देखकर मंत्री को वापस लौट जाने को कहा तो राजा के सेवक और सैनिकों ने उनकी बात को अनदेखा करते हुए फिर से पेड़ों की कटाई प्रारंभ कर दी। तब अमृता देवी ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें वापस जाने को कहा तो नहीं माने और इसी दृश्य को देखकर अमृता देवी की 3 पुत्रियां भी वहां पर पहुंच गई और पर्यावरण संरक्षण का साथ देते हुए वहां के पेड़ पौधों से चिपक कर डटे रहे राजा के सैनिकों ने उनकी बात नहीं मानते हुए पेड़ों के साथ साथ उनके सिर भी कटवा दिए।
खेजड़ी वृक्षों की कटाई क्यों रोकनी पड़ी : -
खेजड़ी वृक्षों के लिए और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अमृता देवी और उसकी तीन पुत्रियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी खेजड़ी के वृक्षों पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
यह भयावह दृश्य देखकर आसपास के लोग भी अमृता देवी के बलिदान को देखकर लोगों ने भी खेजड़ी के वृक्षों से लिपट गए और अपने प्राण गवा दिए। 363 लोगों ने अपने प्राण उस दिन गवा दिए जिन्हें विश्नोई समाज के लोग कहते हैं विश्नोई समाज के लोग खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए अपने प्राण गवा दिए।
बिश्नोई (20+9) क्या है : -
विश्नोई एक समाज है जिसकी स्थापना वहां के गुरु श्री जंभोजी ने की थी उन्होंने गांव में वहां के लोगों को 29 (20+9=29) नियम बताएं जो पर्यावरण सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण नियम थे। और अमृता देवी और विश्नोनोई समाज ने उनके नियमों को आदर्श मानकर अपनेे प्राण पर्यावरण संरक्षण केेेे लिए गवा दिए जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी बिश्नोई समाज वर्तमान समय मेंं भी उस नियम की पालना एक शपथ के रूप में निभाई जा रही है।
खेजड़ली गांव की वर्तमान स्थिति : -
दोस्तों खेजड़ली गांव में पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक महा बलिदान हुआ था जिसे विश्नोई समाज पीढ़ी दर पीढ़ी वर्तमान समय में भी इस परंपरा को बरकरार रख रहे हैं खेजड़ली गांव (वर्तमान जोधपुर) मैं पर्यावरण की रक्षा और जंगली जानवरों की सुरक्षा का भार विश्नोई समाज ने अपने सिर पर उठाया है उठाया है बिश्नोई समाज केे पूर्वजों केेेे बलिदान की कहानी आज भी जोधपुर में गूंज रही है।
जोधपुर में जो राजस्थान में स्थित है वहां का पर्यावरण इतना हरा भरा है और किसी भी मानवों को वहां के वृक्ष और जानवरों पर अत्याचार करना गुनाह माना जाता है जिसे विश्नोई समाज सजा दिलवाकर ही मानते हैं इस बलिदान ने कहीं बातें सिखा कर गई है कि हमें पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए और उसे बचाने के लिए हर प्रयास करना चाहिए। इसके लिए मारवाड़ी में एक कहावत लिखी गई है-
"सिर साठे रुख रहे , तो भी सस्ता जाण"
पर्यावरण का कैसे हो रहा विनाश : -
वर्तमान समय में पर्यावरण का बहुत विनाश हो रहा है यह प्रकृति द्वारा पृथ्वी को दिया हुआ वरदान था जिसका पालन कोई भी नहीं कर पा रहा है कहीं पर बहुत सी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पेड़ों की कटाई की जा रही है जिससे बाढ़ और भूस्खलन को बढ़ावा मिल रहा है।
बढ़ती जनसंख्या का पर्यावरण पर प्रभाव : -
दोस्तों राजस्थान में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में ही जन संख्या लगातार बढ़ती जा रही जिसके कारण भवनों का निर्माण एवं औद्योगिक क्षेत्रोंं का निर्माण तेजी से हो रहा जिसके कारण पर्यावरण का एवं पेड़ पौधोंं की कटाई नियमित रूप सेे की जा रही है जो पृथ्वी पर एक संकट केे रूप में पनप रही हैं।
दोस्तों अगर हमारे द्वारा पर्यावरण संरक्षण के बलिदान को देखते हुए यह जानकारी अगर आपको अच्छी लगी तो कृपया करके हमारे कमेंट बॉक्स में कमेंट करें और इसे शेयर करें ताकि पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिले धन्यवाद।
Posted By - Rakesh Kumar Prajapat | TadkaBright.Com
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