भारत चीन सीमा विवाद के कारण - TadkaBright.Com

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TadkaBright || आज चीन को पूरी दुनिया जानती है की चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के लियें पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। चीन चाहता है की वो विश्व की सबसे बड़ी महाशिक्त बने और पूरे विश्व पर राज करें परतुं अफसोस की भारत जैसा देश चीन को  कभी भी  इसमें सफल नहीं होने देगा।



चीन की विस्तारवादी नीति

चीन  खुद को विश्व की महाशिक्त (Super Power) बनाने के लिए उसने विस्तारवाद की नीति का सहारा लिया चीन इसका इस्तेमाल इस तरह करता है, चीन  पिछाड़े देशों की आर्थिक तौर पर मदद करता है। 

चीन अपने देश में बनी वस्तु को अन्य पिछड़े देशों में कम दाम पर बेच कर अन्य देश की अर्थव्यवस्था  को कमजोर कर देता है। जिससे अन्य पिछड़े देश आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।

जिससें पिछड़े देशो की चीन पर निर्भरता अधिक हो जाती है जिस कारण चीन उन देशों पर अपना अधिकार कर लेता है और चीन उन देशों पर अपना अत्याचार करता रहा।

जवाहरलाल नेहरू की सीमा सुरक्षा पर लापरवाही

जब भारत देश आजाद हुआ तब पहले आम चुनाव में कांग्रेस जीती जब  पंडित जवाहरलाल नेहरू को देश का प्रथम प्रधानमंत्री बनाया गया, हमारे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद थे।

जब पाकिस्तान भारत से अलग हुआ तो पाकिस्तान  के द्वारा काब्बलियों ने भारत पर आक्रमण कर  दिया था तो उस समय पाकिस्तान ने भारत की 5000 वर्ग किलोमीटर की जमीन अपने हिस्से में कर ली।

एक तरफ चीन ने अक्साई चीन से लेकर शिंजियांग प्रांत तक सड़क  निर्माण कराया चीन पहले से ही अपनी विस्तारवादी नीति के कारण उसने कई देशों पर अपना अधिकार कर लिया है उस समय भी यह बात संसद में उठी थी क्योंकि अक्साई चीन भारत की सीमा था।



संसद मैं उठा चीन सीमा का मुद्दा

जब चीन और भारत की जमीन पर  कब्जा कर रहा था तो यह मुद्दा संसद में उठा तो डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मैं इसका विरोध करें उन्होंने कहा कि उन्होंने चीन उनकी जमीन पर कब्जा कर रहा 
है।

तो हमारी सरकार इस पर क्या कर रही है तब उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि उस जमीन को लेकर हम क्या करेंगे उस जमीन पर तो उगता।

तब उस समय उन्हीं के उनकी पार्टी के सांसद महावीर त्यागी ने संसद में खड़े होकर अपने सिर पर से टोपी हटाकर कहा कहा कि मेरे सिर पर बाल नहीं है तो इसका मतलब मेरी सर की कोई कीमत नहीं है। 

परंतु ऐसी बातों का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर कोई भी फर्क नहीं पड़ा और वह हिंदी चीनी भाई भाई के नशे में डूबे रहे और चीन ने भारत की 38000 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया।



1961 के युद्ध में चीन से हार की वजह

चीन सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को  लद्दाख के रास्ते भारत पर हमला करा यही युद्ध करीब 1 महीने तक चला था जिसमें भारत के 1300 सैनिक शहीद हो गए थे और यह युद्ध 21 नवंबर 1962 को खत्म हो जिसमें भारत की हार हुई।

हार  का पूरा दोष भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और उस समय के रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन और उस समय के सेना  प्रमुख पीएन थापर  की भूमिका पर कई सारे सवाल उठे उस समय के राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने कहा की नेहरू ने युद्ध में लापरवाही की थी।

जिस कारण भारत इस युद्ध में हार गया युद्ध   से पहले 6 महीने पहले ही रक्षा मंत्री ने बीएम कौल की जगह पीएन थापर को सेना प्रमुख बनाया था क्योंकि उस समय के सेना प्रमुख बीएम कौल उन्हें युद्ध के लिए सर्तक करते थे।

परंतु रक्षा मंत्री कृष्णा  मेनन उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते थे किस कारण कि वह कई बार प्रधानमंत्री के पास भी गए थे परंतु प्रधानमंत्री भी उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते थे जिस कारण उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

रक्षा मंत्री ने उनकी जगह पीएन थापर को सेना प्रमुख बनाया जो कि उनकी बातें मानता था  जिस कारण की नौकरशाही के कारण सेना प्रमुख सीमा पर कोई ध्यान नहीं था वह वही बातें मानते थे जो रक्षा मंत्री उन्हें  कहते थे यह की एक बड़ी वजह थी युद्ध ने की हार ने की।



दलाई लामा का भारत में प्रवेश

जब चीन ने 1959 में तिब्बत पर कब्जा करा था तो चीन सरकार बौद्ध धर्म के 15वें धर्मगुरु दलाई लामा को मरवाना चाहती थी क्योंकि तिब्बत को चीन अपने कब्जे में ले लिया था चीन की कम्युनिस्ट पार्टी धर्म को नहीं मानती।

इस कारण है धर्मगुरु बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा को मरवाना चाहती थी लेकिन दलाई लामा मैं पहले ही 31 मार्च 1959 को असम के तेजपुर के रास्ते भारत में प्रवेश करा उस समय भारत में दलाई लामा का बहुत धूमधाम से स्वागत हुआ था।

उनके साथ उनकी मां और बहन भी साथ थी और उनके साथ 80000 अनुयायियों साथ आए थे बाद में दलाई लामा और उनके अनुयायियों हिमाचल प्रदेश में जाकर बस के और आज भी वह वह यहीं रहते हैं।

चीन भारत से बार-बार मांग करता है कि वह दलाई लामा को वापस तिब्बत भेजें परंतु चीन की मांग कभी पूरी नहीं होगी और खुद दलाई लामा भी अब भारत में रहना चाहते है चीन दलाई लामा को मरवाना चाहता है और यह बात दलाई लामा की अच्छी  तरह जानते हैं  इसलिए वह तिब्बत नहीं जाना चाहते हैं।


Posted By - Vishal Rajvanshi | TadkaBright.Com
 

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